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फ़िल्म समीक्षा - रंगून

मूवी रिव्यू :- रंगून
स्टार कास्ट :- कंगना रनौत, शाहिद कपूर, सैफ अली खान

डायरेक्टर- विशाल भारद्वाज

रेटिंग- ****




एक कहावत है की युद्ध और प्रेम में सब जायज है, आज बात कर रहे हैं युद्ध की पृष्ठभूमि पर बनी प्रेम कहानी रंगून की, जैसा की नाम से ही लग रहा है की ये  फ़िल्म वर्ल्ड वॉर 2 के आसपास की कहानी है, गुलाम भारत और आज़ादी की कहानी के परिदृश्य पर बनी एक प्रेम कथा है

द्वितीय विश्व युद्ध के बैकड्रॉप में बनी विशाल भारद्वाज की रंगीन फिल्म ‘रंगून’ छोटी-मोटी चूकों के साथ नजरअंदाज करें तो यह  एक खूबसूरत फिल्म है। इस प्रेम कहानी में राष्ट्रीय भावना और देश प्रेम की गुप्त धार है, जो फिल्म के आखिरी दृश्यों में पूरे वेग से उभरती है। विशाल भारद्वाज ने राष्ट्रम गान ‘जन गण मन’ के अनसुने अंशों से इसे पिरोया है। किसी भी फिल्म में राष्ट्रीय भावना के प्रसंगों में राष्ट्रगान की धुन बजती है तो यों भी दर्शकों का रक्तसंचार तेज हो जाता है।



इस फिल्म की कहानी कंगना रणावत के कैरेक्टर मिस जूलिया के किरदार के आस पास घूमती है, एक बार फिर कंगना ने ये साबित कर दिया है कि वो अपने दम ना सिर्फ फिल्म को चला सकती हैं बल्कि वो सब कुछ कर सकती हैं जो फिल्म में एक हीरो करता है,

कंगना की खास बात ये कि वो एक्टिंग नहीं करती हैं बल्कि किरदार को जीती हैं. फिल्म की शुरूआत में ही उनके कैरेक्टर मिस जूलिया की जब एंट्री होती है तो कुछ समय में ही आप एक हीरोइन को भूलकर मिस जूलिया को देखने लगते हैं.



फिल्म के डायरेक्टर विशाल भारद्वाज है. लोग सिनेमा उनके नाम पर देखते हैं, इस लव ट्राएंगल में आपको ऐसी बहुत चीजें देखने को मिलेंगी जो आप फिल्मों में कब से मिस कर रहे थे.

कहानी-

इस फ़िल्म की कहानी 1943 के दौर की है जो आपको आजादी के लिए संघर्षरत दिनों की याद दिलाएगी, उस समय एक्शन हीरोईन मिस जूलिया (कंगना रनौत) सभी के दिलों पर राज करती हैं तो वहीं उनके प्रोड्यूसर/मालिक रूसी बिलमोरिया (सैफ अली खान) उन पर इस कदर फिदा है कि अपने पत्नी तक को छोड़ देता है. बर्मा बॉर्डर पर सैनिकों के मनोरंजन के लिए जा रही मिस जूलिया की मुलाकात नवाब मलिक (शाहिद कपूर) से होती है

रास्ते में ही उनकी पूरी टीम पर हवाई हमला होता है और वो किसी तरह बच जाती हैं. यही इनका प्यार पनपता है. क्या होता है जब रूसी बिलमोरिया को इसकी भनक लगती है? कहानी बस इतनी ही नहीं है और भी बहुत कुछ है लेकिन उसके लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी.


कमजोर पक्ष-

फिल्म में एक डायलॉग है कि ‘अपनी जान से कीमती कोई चीज है क्या?’ तो इसका जवाब आता है, ‘हां, हम जिसके लिए अपनी जान दे सकें.’ ऐसे डायलॉग से फिल्म देशभक्ति का जज्बा जगाने के लिए काफ़ी कोशिश की गयी है लेकिन ये कोशिश कुछ खास कारगर नही रही, फ़िल्म का कोई भी सीन आजादी से जुड़े हुए दृश्य मन में कोई ज़ज़्बा जगाने के लिए काफ़ी नहीं है, युद्ध और लड़ाई का पार्ट हटा दिया जाए तो ये पूरी तरह से परफेक्ट लव स्टोरी है

एक्टिंग

ये फिल्म पूरी तरह से महिला प्रधान फ़िल्म है यानि कि कंगना रणावत की है जो खुद को एक अलग मुकाम पर ले गईं हैं. इससे पहले ‘तनु वेड्स मनु’ और ‘क्वीन’ में अपने अभिनय से सभी का दिल जीत लेने वाली कंगना इस फिल्म की असली हीरो हैं. इसमें नवाब और जूलिया का इश्क आपको रूहानी प्यार का अहसास दिलाता है.

इस फिल्म में शाहिद कपूर भी जमे हैं. विशाल भारद्वाज की फिल्म ‘कमीने’ और ‘हैदर’ में काम करने वाले शाहिद ने इस बार भी शिकायत का कोई मौका नहीं दिया है. इस शाहिद और कंगना के रोमांस का ऐसा पिक्चराइजेशन है किया गया है जो आम फिल्मों से हटकर है. फिल्म में कीचड़ और रेत में लव-मेकिंग सीन दिखाए गए हैं, ये कुछ ऐसा प्रयोग है जो लीक से हटकर फिल्म बनाने वाला ही कर सकता है.

सैफ की बात करें तो विशाल की ही फिल्म ‘ओमकारा’ में सैफ ने लंगडा त्यागी का किरदार निभाया था और उसे आजतक भूला नहीं जा सकता है. इसमें भी सैफ ने रूसी बिलमोरिया के किरदार को यादगार बनाया है. फिल्म में रूसी और जूलिया के बीच एक तलवार बाजी का सीन है जो आपको थ्रिल कर देगा.



म्यूजिक

इस फिल्म को म्यूजिक खुद विशाल भारद्वाज ने दिया हैं और गाने लिखे हैं गुलजार ने. ये जोड़ी इससे पहले जब भी साथ आई है कुछ ऐसा किया है जो यादगार है चाहें बात ‘हैदर’ फिल्म में ‘बिस्मिल’ की हो या फिर ‘सात खून माफ’ में ‘डार्लिंग’ हो. इस फिल्म में सूफी गाना ‘ये इश्क है’ पहले ही बहुत पॉपुलर हो चुका है और जब ये गाना बजता है आप इसमें खो जाते हैं. इसके अलावा टिप्पा गाना भी अच्छा है जो ट्रेन पर फिल्माया गया है. ‘मेरे पिया गए रंगून’ के ही धून पर ‘मेरे पिया गए इंग्लैंड’ है जो कंगना पर खूब फबता है. इसका गाना ‘ब्लडी हेल’ ऐसा है जिसे देखकर लगता है कि ये कंगना के लिए बना है

क्यों देखें-

इससे पहले हम विशाल भारद्वाज फिल्म ‘मकबूल’, ‘हैदर’, ‘ओमकारा’ और ‘सात खून माफ’ जैसी कई फिल्में बना चुके हैं. ‘मटरू की बिजली का मंडोला’ भी उन्होंने बनाई जो कुछ खास लोगों को पसंद नहीं आई. इस फिल्म में भी उन्होंने एक्सपेरिमेंट किया है जो उनकी तरह का सिनेमा देखने वालों को थोड़ा निराश कर सकती है. चुंकि विशाल ने इसे पीरियड फिल्म बनाने की कोशिश की है और दिखाई लव स्टोरी है. इस वजह से फिल्म काफी धीरे-धीरे चलती है. लेकिन करीब दो घंटे 40 मिनट की ये फिल्म आपको कंगना के लिए देखनी चाहिए जिन्होंने खुद को ये साबित कर दिया है कि फिल्म को चलाने के लिए किसी बड़े सुपरस्टार अभिनेता की जरूरत नहीं

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