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फ़िल्म समीक्षा - अज़हर

इस फिल्म को देखने के बाद आपके मन में ये सवाल उठेगा आखिर अभिनेता हाशमी में मो. अजहरुद्दीन (पूर्व भारतीय क्रिकेट कप्तान) की कोई छाप नज़र ही नहीं आ रही हैं जबकि फ़िल्म अज़हर के जीवन पर ही है


फ़िल्म देखने चलेंगे तो यही सवाल शुरुआती कुछ मिनटों तक कायम रहेगा लेकिन जैसे-जैसे फिल्म आगे बढेगी तो लगेगा कि बेशक इमरान हाशमी की शक्ल अजहरुद्दीन से मेल न खाती हो, लेकिन उन्होंने उनके हाव-भाव डालने की कोशिश की गयी है 

बेशक, वो अजहर की तरह बोल नहीं पा रहे साथ ही उनमें अजहर जैसी हिचकिचाहट और शब्दों को साफ न बोल पाने वाली बात न के बराबर है पर हाश्मी ने कोशिश पूरी की है और हाशमी ने ये जरूर जताया है कि एक विवादास्पद कप्तान के जीवन में कई ऐसे मोड़ भी रहे होंगे या हैं जिनसे लोग वाकिफ़ नहीं हैं।
निर्देशक टोनी डिसूजा की ये फिल्म पूरी तरह से मोहम्मद अजहरूद्दीन की जिंदगी पर आधारित है

जिसमें मैच फिक्सिंग प्रकरण को मुद्दा बना कर दिखाया गया है
अजहर की दो-दो शादियों के अलावा नब्बे के दशक में भारतीय क्रिकेट टीम के ड्रेसिंग रूम तक काफ़ी बातें इस फ़िल्म में शामिल की गयी हैं।  

फ़िल्म दिखाती है कि कैसे अजहर (इमरान हाशमी) की टीम इंडिया में एंट्री हुई और फिर वो मैच फिक्सिंग में जा घिरे। 

ये कहानी शुरू होती है हैदराबाद में अजहर के जन्म से। उसके नाना (कुलभूषण खरबंदा) ने उसे बल्ला थामना सिखाया।

ये उनकी ही जिद थी कि वह अजहर मुंबई जाए। भारतीय क्रिकेट टीम में जगह पाने के बाद अजहर रातों रात क्रिकेट प्रेमियों की आंख का तारा बन गया और देखते ही देखते टीम का कप्तान भी। नाम मिला, पैसा मिला और शोहरत भी। शादी हुई तो नौरीन (प्राची देसाई) जैसी बेहद प्यार करने वाली पत्नी भी मिली।

फ़िल्म में कई मोड़ है जैसे अज़हर की ज़िन्दगी में थे मैच फिक्सिंग दूसरी शादी और कई इल्ज़ाम । इन सबसे जूझते दिखे है अज़हर का रोल प्ले करते हुए इमरान हाश्मी ।

हालाँकि अजहर की शक्ल और उसके हाव-भाव बेशक हाशमी से पूरी तरह मेल न खाते हों, पर उन्होंने इस किरदार को परदे पर पेश करने में काफी मेहनत की है।

हाशमी जब-जब स्क्रीन पर दिखते हैं तो अच्छा लगता है। यह उनका व्यक्तित्व ही है, जो उन्हें एक खिलाड़ी से ऊपर उठाकर एक स्टार के रूप में पेश करता है।

दूसरी बात ये कि सब जानते हैं कि यह फिल्म अजहरुद्दीन पर केन्द्रित है, बावजूद इसके किसी पचड़े में न पड़ते हुए या कहिये किसी पर उंगली न उठाते हुए निर्देशक ने बड़ी सफाई ये कह दिया है कि उस पूरे प्रकरण में किसकी क्या भूमिका थी। उस दौर में कौन ड्रेसिंग रूम का प्लेबॉय हुआ करता था और कौन प्रेरित करता था।

अभिनय की दृष्टि से तो हाशमी आपको बांधे रखते हैं। प्राची देसाई भी ठीक ठाक लगती है, लेकिन संगीता के रोल में नरगिस फखरी अपना असर नही छोड़ पायी हैं।

यह फिल्म इमरान हाशमी और अजहरूद्दीन के प्रशंसकों में जरूर उत्साह जगा सकती है, लेकिन उस चरम तक नहीं जा पायी जहाँ तक लोगों की उम्मीद थी ये एक बायोपिक की तरह भी नहीं लगेगी जिसकी उम्मीद सभी को थी

कलाकार: इमरान हाशमी, प्राची देसाई, नरगिस फखरी, राजेश शर्मा, लारा दत्ता, कुणाल राय कपूर
निर्देशक: टोनी डिसूजा
निर्माता: शोभा कपूर, एकता कपूर
लेखक : रजत अरोड़ा
संगीतप्रीतम, मो. तारिक
रेटिंग 2 स्टार

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