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गूगल ने हिंदी सिनेमा के लौह स्तंभ यानि कि वी शांताराम के एक सौ सोलह जन्म दिन पर अपना डूडल किया समर्पित
गूगल ने हिंदी सिनेमा के लौह स्तंभ यानि कि वी शांताराम के एक सौ सोलह जन्म दिन पर अपना डूडल किया समर्पित
गूगल ने शनिवार को हिंदी सिनेमा के लौह स्तंभ यानि कि वी शांताराम के एक सौ सोलह जन्म दिन के अवसर पर एक चित्र के माध्यम से श्रद्धांजलि अर्पित की। प्रसिद्ध भारतीय फिल्म निर्माता थे वी शांताराम । 18 नवंबर 1 9 01 को राजाराम वानकुर्दे शांताराम के रूप में जन्में वी शांताराम, महान फिल्मों के महान निर्माता निर्देशक को जिन फिल्मों से जाना जाता है वे हैं डॉ कोटिनीस की अमर कहानी (1946), अमर भोपाली (1951), झनक झनक पाल बाजे (1955), दो आँखे बारह हाथ (1957), नवरंग (1959), दुनिया न माने (1937) और पिंजरा (1972) ।

खोज कर्ता ने जो तस्वीर साझा की है उसमें 1950 के दशक में वी शांताराम द्वारा निर्मित और निर्देशित तीन फिल्मों को दर्शाया गया है, इन फिल्मों ने उन्हें कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार जितवाए, अमर भोपाली ने एक साधारण गाय चराने वाले ग्वाले की वास्तविक कहानी है, जो मन से एक कवि भी हैं और कविता का ज्ञान उसे प्रकृति से मिला है, फ़िल्म में मराठा संघ के दिनों को व्यक्त किया गया है| शास्त्रीय भारतीय नृत्य की पृष्ठभूमि पर आधारित फ़िल्म झनक झनक पायल बाजे का भी चित्र में वर्णन हैं, ये पहली भारतीय फ़िल्म थी जिसमें टेक्निरंगों का इस्तेमाल किया गया था |

दो आँखें बारह हाथ फ़िल्म एक जवान जेल वार्डन की कहानी है, जो कड़ी मेहनत के माध्यम से खतरनाक कैदियों को पुण्य के रस्ते पर लेकर सुधार लेता है, इस फ़िल्म में आप मानवतावाद की वकालत करने के लिए शांताराम के शक्तिशाली दृष्टिकोण भी देख सकते हैं तो वही अन्याय को उजागर करके दिखाया गया है, फ़िल्म के ये दोनों ही पक्ष दो आँखें बारह हाथ को एक बेहतरीन फ़िल्म की श्रेणी में ले गए, और वी शांताराम को उनके काम को अमर बना गए | सुकान्तो देबनाथ द्वारा बनाया गए है ये चित्र, भारतीय सिनेमा पर शांताराम के स्थायी प्रभाव का जश्न इस तरह से मानना अपने आप में खूब है| वी शांताराम ने अपने फ़िल्मी सफ़र की शुरुआत १९२१ में आई मौन फ़िल्म सुरेखा हरान से की थी, अण्णा साहेब के नाम से प्रसिद्द वी शांताराम ने लगभग ६ दशकों तक एक फ़िल्म निर्माता के तौर पर राज किया ।

वी शांताराम की फ़िल्मो में सामाजिक मान्यताएं, परिवर्तन, विकास प्रभावशीलता का एहसास, मानवता की ओर एक क़दम अन्याय का पर्दाफाश करना जैसे कई मुद्दे थे, 1985 में शांताराम को दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया था और 1992 में उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था।

30 अक्टूबर 1990 को मुंबई में उनका निधन हो गया। "वी शांताराम पुरस्कार" उनके सम्मान में केंद्र सरकार और महाराष्ट्र राज्य सरकार द्वारा गठित किया गया था
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