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K.L सहगल के जन्मदिन पर विशेष - #11 April

भारतीय फिल्म इंडस्ट्री के पहले सुपरस्टार, जानेमाने अभिनेता, गायक कुन्दन लाल सहगल उर्फ के.एल. सहगल का जन्म 11 अप्रैल 1904 को नवा शहर जम्मू में हुआ था। उनके पिता अमर चन्द्र जम्मू रियासत में तहसीलदार थे व उनकी माँ केसर बाई एक धार्मिक महिला थीं। केसर बाई सहगल को लेकर धार्मिक आयोजनों में जाती थीं जहां भजन, कीर्तन व शबद गाये जाते थे। सहगल को संगीत का शौक यहीं से लगा।



1932 में रिलीज हुई फिल्म " मोहब्बत के आँसू " से अपने फिल्मी कैरियर का आगाज करने वाले सहगल ने कुछ दिनों तक पंजाब रेलवे में टाइमकीपर के रूप में भी काम किया था। अपने 15 वर्ष के फिल्मी कैरियर में सहगल ने 36 फिल्मों में काम किया और करीब 185 गीत गाये। भारतीय फिल्म इंडस्ट्री में 1932 से लेकर 1946 का समय सहगल- युग के नाम से जाना जाता है। 

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय के उपन्यास पर आधारित फिल्म " देवदास" में शराबी के रोल ने सहगल को रातों रात स्टार बना दिया। फिल्म का गीत बालम आय बसो मेरे मन में बेहद लोकप्रिय हुआ। फिल्म स्ट्रीट सिंगर के गीत इसी गीत ने बाबुल मोरा नैहर छूटो ही जाय ने सहगल को लोकप्रियता के शिखर पर पहुंचा दिया।

सहगल साहब के संबंध में कई किस्से व किवदंतियां प्रचलित हैं। एक बार जब लता मंगेशकर उनकी फिल्म चण्डीदास देखकर आईं तो वे उनके अभिनय से इतनी प्रभावित हुईं कि उन्होंने ऐलान कर दिया कि वे बड़ी होकर सहगल से शादी करेंगी। एक बार सहगल अपने एक मित्र के साथ कहीं जा रहे थे तो रास्ते में उन्हें एक फकीर मिला जो गालिब की ग़ज़ल गा रहा था। सहगल उससे इतने प्रभावित हुए कि अपनी जेब से निकाल कर 5000 रुपये उसे थमा दिये। उस जमाने में पांच हजार की राशि बहुत बड़ी होती थी। जब सहगल के मित्र ने उनसे पूछा कि तुमने गिने कितने पैसे थे इस पर सहगल ने कहा क्या ऊपर वाले ने जब ये पैसे मुझे दिये थे उसने गिने थे क्या?



सहगल 1941 में मुम्बई आये और कई हिट फ़िल्में दी जिनमें शाहजहां, भक्त सूरदास व परवाना प्रमुख हैं । पर यहां आकर उन्हें शराब की लत लग गयी जिससे उनका काम व स्वास्थ्य प्रभावित होने लगा। लेकिन शराब की लत के चलते 18 जनवरी 1947 को मात्र 42 वर्ष की उम्र में उनकी मृत्यु हो गयी। 

किसी गायक के लिए इससे ज्यादा सम्मान की और क्या बात हो सकती है कि रेडियो सिलोन से सुबह 7:30 से 8:00 बजे तक जब पुरानी फिल्मों का संगीत कार्यक्रम आता था तो उसमें प्रतिदिन अंतिम गीत सहगल साहब का ही होता था। 

मुझे सहगल के गीतों की लत रेडियो सिलोन से ही लगी। सहगल के अन्य प्रमुख गीतों में गम दिये मुस्तकिल, एक बंगला बने न्यारा, चाह बरबाद करेगी हमें, मैं क्या जानूं, ऐ दिले बेकरार झूम व आवाज दे कहाँ है आदि शामिल हैं।

सहगल युग और सहगल को शत - शत नमन, हार्दिक नमन 

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