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संगीत.कॉम - रवींद्र जैन


ओल्ड इज़ गोल्ड' के पहले अंक में सुरभि का नमस्कार 









Born28 February 1944
Aligarh, Uttar Pradesh
Died9 October 2015 (aged 71)
Mumbai, India
GenresIndian classical music and Playback singing
Occupation(s)Composer, music director, lyricist
InstrumentsHarmonium
Years active1971 – 2015


दोस्तों, 70 के दशक के मध्य भाग से फ़िल्म-संगीत में व्यवसायिक्ता सर चढ़ कर बोलने लग पड़ी थी। 

धुनों में मिठास कम और शोर-शराबा ज़्यादा सुनाई देने लगा था । 




गीतों के बोल भी अर्थपूर्ण नहीं थे साथ ही कुछ चलताऊ क़िस्म के होने लगे थे। 
गीतकार और संगीतकार को न चाहते हुए भी तमाम बंधनों में बंध कर काम करना पड़ता था । 

लेकिन तमाम पाबन्दियों के बावजूद कुछ कलाकार ऐसे भी हुए जिन्होंने कभी हालात के दबाव में आकर अपने उसूलों और कला के साथ समझौता नहीं किया। भले इन कलाकारों नें फ़िल्में रिजेक्ट कर दीं, पर अपनी कला का सौदा नहीं किया। 

70 के दशक के मध्य भाग में एक ऐसे ही सुर-साधक का फ़िल्म जगत में आगमन हुआ था जो न केवल एक उत्कृष्ट संगीतकार थे बल्कि एक बहुत अच्छे काव्यात्मक गीतकार और एक सुरीले गायक भी थे ।

यही नहीं, यह लाजवाब कलाकार पौराणिक विषयों के बहुत अच्छे ज्ञाता भी थे । फ़िल्म-संगीत के गिरते स्तर के दौर में अपनी रुचिकर रचनाओं से इसके स्तर को ऊँचा बनाये रखने में उल्लेखनीय योगदान देने वाले इस श्रद्धेय कलाकार को हम सब जानते हैं रवीन्द्र जैन के नाम से और आपको बता दें कि प्यार से फ़िल्म-इंडस्ट्री के लोग उन्हें दादु कह कर बुलाते हैं।

आइए आज से 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में शुरु करते हैं दादु पर केन्द्रित लघु शृंखला 'संगीत.कॉम से '। यूं तो रवीन्द्र जैन नें बहुत से ऐसे फ़िल्मों में भी संगीत दिया है जिनके गीत किसी और गीतकार नें लिखे हैं, पर इस शृंखला में हम कुछ ऐसे गीतों को चुना है जिन्हें रवीन्द्र जैन नें लिखे और स्वरबद्ध किए हैं।




संगीत.कॉम की पहली कड़ी के लिए हमने वो गीत चुना है जिसमें रवीन्द्र जैन को अपनी पहली कामयाबी हासिल हुई थी।
१९७३ की अमिताभ बच्चन, नूतन और पद्मा खन्ना अभिनीत यह फ़िल्म थी 'सौदागर', जो बंगाल के ग्रामीण पार्श्व पर आधारित थी और खजूर के रस से गुड़ बनाने की प्रक्रिया के इर्द-गिर्द घूमती कहानी थी। 

रवीन्द्र जैन का फ़िल्म जगत में किस तरह से आगमन हुआ इसके बारे में तफ़सील से हम अगले अंक में बताएंगे, आज बस 'सौदागर' फ़िल्म के बारे में जानिए दादु से ही।

"जब हम बॉम्बे फ़ाइनली आ गए, तो फिर हरिभाई (संजीव कुमार) ही यहाँ मेरे आत्मीय या दोस्त थे, और हम बॉम्बे 1970 में आ गए, और यहाँ जो पहली रात नष्ट हुई, उसी रात को मुरली हरि बजाज, राधेश्यामजी के दोस्त थे, उनके बेटे का जन्मदिन था, जहाँ मैंने गाना गाया और ख़ूब गाने गाए, और वहाँ रामजी मन्हर, हास्य कवि हमारे, तो उन्होंने सुना और उन्होंने कई लोगों से मीटिंग्स कराई। 

उन्होंने काफ़ी सहयोग दिया, 'राजश्री प्रोडक्शन्स' वालों से उन्होंने ही मिलाया, सागर साहब से मिलाया और बहुत दिनों तक प्रोग्राम्स उनके लिए करता रहा जब तक काम नहीं था मेरे पास। इस तरह मदद की उन्होंने।







'सौदागर' में जब, एक बार दुर्गा पूजा की छुट्टियों में १० दिन के लिए आया था जब, तो राजश्री वालों से मुलाक़ात हुई थी, इन्होंने कहा था कि 'तुम्हारे लायक जब भी कोई सब्जेक्ट होगा तो ज़रूर बुलाएंगे और हम काम करेंगे साथ में'। और ताराचन्द जी उस समय हयात थे, वो ही प्रोडक्शन्स सारा देख भाल करते थे और धुनें सिलेक्ट करना, गानें सिलेक्ट करना, 'सौदागर' से उनके साथ यह सिलसिला शुरु हुआ, 'राजश्री प्रोडक्शन्स' के साथ काम करने का। 'सौदागर' के सभी गानें बेहद मक़बूल हुए। 

यह एक शॉर्ट स्टोरी थी नरेन्द्रनाथ मित्र की लिखी हुई, जिसका शीर्षक था 'रस', बंगला कहानी थी, और गुड़ बनाने वाले की कहानी, खजूर के रस से गुड़ बनाना। तो बंगाल तो मेरे लिए मतलब, मेरा मनचाहा सब्जेक्ट मिल गया। तो मेरे गानें उस फ़िल्म में, मुझे रिकग्निशन सौदागर से मिला।" तो लीजिए सुनते हैं फ़िल्म 'सौदागर' का यह गीत किशोर कुमार की आवाज़ में....






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