मीना कुमारी ‘नाज’ 1 August 1932 - 31 March 1972
महजबीं बानो ने जिंदगी को ऐसे ही देखा था...सरे राह चलते चलते...
जिंदगी के कठिन डगर पर रिश्तों का बोझ ढोते ढोते और उनका मानी-मतलब समझते समझते वह छोटी सी महजबीं से मीना कुमारी बनी और सिनेमा के पर्दे पर उन्हें उकेरने और उंडेलने लगी...
और जब उससे भी तन्हाई और रिश्तों की तल्खी कम नहीं हुई तो अपनी जिंदगी की स्याही शराब में घोल कर कागज पे उकेरने लगीं... वह मीना कुमारी ‘नाज’ बनीं।
महजबीं मां-बाप की अनचाही बेटी थी...
मीना कुमारी के अभिनय का सिक्का तो चला, लेकिन रिश्तों की आग में तप कर...
पाकीजा का वह अमर दृश्य देखें... मीना कुमारी का दुपट्टा उड़ता है और राजकुमार उनसे कहते हैं, ‘’तुम पाकीजा हो।’’ इस दृश्य की शूटिंग के लिए एक दो बार नहीं 17 बार रिटेक किया गया था...
क्या कमाल अमरोही एक अमर दृश्य पाना चाहते थे?
मीना कुमारी सख्त बीमार थीं। उन्हें liver cirrhosis था और उनका जिगर जवाब दे रहा था। वह पाकीजा फिल्म पूरा करना चाहती थी। निजी जिंदगी में सताने वाले कमाल के लिए रिटेक भी एक हथियार था...
वह एक बेमिसाल अभिनेत्री थीं...एक लाजवाब शायरा थीं... और उन सबसे बढ़ कर एक औरत...
वह एक एक सफल अभिनेत्री थीं, एक शानदार शायरा, लेकिन एक नाकाम औरत... जिंदगी की जंग में दिल की गहराइयों तक लहूलुहान... रिश्तों और स्वार्थों की आंधी के बीच अपनी जिंदगी के दश्त में मुहब्बत और खुलूस का एक नन्हा सा दिया जलाने की कोशिश करती एक आबलापा औरत...
अपने खून-ए-जिगर से लिखी मीना कुमारी की गजल मुझे बहुत पसंद है... आपको भी पसंद आएगी:
आबलापा कोई इस दश्त में आया होगा
वरना आंधी में दिया किसने जलाया होगा
वरना आंधी में दिया किसने जलाया होगा
ज़र्रे-ज़र्रे पर जड़े होंगे कुंवारे सज्दे
एक एक बुत को खुदा उसने बनाया होगा
एक एक बुत को खुदा उसने बनाया होगा
प्यास जल्ते हुए कांटों की बुझाई होगी
रिसते पानी को हथेली पे सजाया होगा
रिसते पानी को हथेली पे सजाया होगा
मिल गया होगा अगर कोई सुनहरी पत्थर
अपना टूटा हुआ दिल याद तो आया होगा
अपना टूटा हुआ दिल याद तो आया होगा
- मीना कुमारी ‘नाज’
(1 August 1932 - 31 March 1972)
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