नरगिस की निशानियां: ‘इंटेलेक्चुअल’ अदाकारा
आज से ठीक छब्बीस साल पहले नरगिस दत्त की कैंसर से मौत हो गयी थी । जीवन कई बार इंसान की मर्जी से अलग चलता है इसकी मिसाल देखिए कि नरगिस अपने बेटे की फिल्म को रिलीज़ होते नहीं देख पाईं ।
एक ख्वाब था जो अधूरा रह गया । दिल की दिल में ही रह गयी । और उनकी मौत के चार दिन बात सात मई को संजय दत्त ने रजत पट पर अपना पहला क़दम रखा ‘रॉकी’ के ज़रिए ।
बहरहाल अदाकारा नरगिस की जिंदगी वाक़ई बेहद नाटकीय रही । पैदा हुईं तो नाम था फातिमा रशीद । मां जद्दन बाई नामचीन गायिका और अभिनेत्री थीं । पांच बरस की हुईं तो फिल्मों में बेबी रानी के नाम से काम करवाया जाने लगा ।
बनना चाहती थीं डॉक्टर पर मां की जिद के आगे एक ना चली । शूटिंग में व्यस्त हो गयीं । ज़बर्दस्ती अभिनेत्री बनाया गया, फिर भी कद्दावर अभिनेत्री कहलाईं और हिंदी सिनेमा की सबसे नरमो-नाजुक और सबसे ‘इंटेलेक्चुअल’ अदाकारा कही गयीं ।
राजकपूर और नरगिस की जोड़ी पहली बार सिनेमा के परदे पर आई थी सन 1948 में फिल्म ‘आग’ में
ये आर0के0प्रोडक्शन्स की पहली पेशकश थी, यानी निर्देशन और फिल्म निर्माण की दुनिया में राजकपूर का पहला पहला क़दम ।
इसके बाद बरसात (1949) आवारा (1951) आह(1953) श्री 420(1955) चोरी चोरी(1956) जागते रहो(1956) जैसी फिल्मों में राजकपूर और नरगिस की जोड़ी नज़र आई ।
ये आर0के0प्रोडक्शन्स की पहली पेशकश थी, यानी निर्देशन और फिल्म निर्माण की दुनिया में राजकपूर का पहला पहला क़दम ।
इसके बाद बरसात (1949) आवारा (1951) आह(1953) श्री 420(1955) चोरी चोरी(1956) जागते रहो(1956) जैसी फिल्मों में राजकपूर और नरगिस की जोड़ी नज़र आई ।
(इनमें से फिल्म चोरी चोरी राजकपूर का निर्माण नहीं थी । ना ही वो इसके निर्देशक थे । और जागते रहो का केवल निर्माण उन्होंने किया था)
आपने देखा होगा राज कपूर ने अपनी फिल्मों में नरगिस को बिलकुल साफ शफ्फाफ सफेद साड़ी में पेश किया है । लंबे बाल, माथे पर लहराती जुल्फ़ और इतना मासूम चेहरा कि जिसके लिए अंग्रेज़ी का शब्द vulnerable मौजूं लगता है और इसकी जोड़ का हिंदी शब्द मिल नहीं रहा है ।
आईये कुछ गानों के ज़रिए नरगिस की अदायगी को सलाम करें ।
याद कीजिये फिल्म‘आवारा’ का वो गीत, जिसमें लता जी गाती हैं ‘दम भर जो उधर मुंह फेरे, वो चंदा, मैं तुमसे प्यार कर लूंगी, बातें हज़ार कर लूंगी’ तो एक भारतीय लड़की की लाज भी दिखती है और लड़कियों की वो बोल्डनेस भी दिखती है जो सिर्फ और सिर्फ प्यार करने वालों में पाई जाती है, याद रहे ये वो लड़की है जो एक आवारा से प्यार कर रही है ।
इस फिल्म को देखिये और महसूस कीजिए कि कितनी शिद्दत से नरगिस ने इस भूमिका निभाया है ।
फिर मुझे फिल्म श्री 420 का वो गीत ‘प्यार हुआ इक़रार हुआ’ इस गाने का वो दृश्य याद कीजिए जिसमें राजकपूर और नरगिस छाता लगाकर बारिश में टहलते हुए गाना गा रहे हैं । और नरगिस वायलिन बजाते राजकपूर की बांहों में झूल जाती हैं ।
यही दृश्य आगे चलकर आर0के0फिल्म्स का ‘लोगो’ बना ।
इस गाने में नरगिस लता जी की आवाज़ में गाती है—‘मैं ना रहूंगी तुम ना रहोगे फिर भी रहेंगी निशानियां’ और इस पूरे गीत में नरगिस के चेहरे के भाव देखिए, यक़ीन मानिए आज शायद प्यार के समर्पण का वो भाव सिरे से ग़ायब ही हो चुका है ।
हम इस विवाद में नहीं पड़ते कि राजकपूर और नरगिस की ऑनस्क्रीन केमिस्ट्री क्या उनकी असली जिंदगी में भी थी । अगर थी भी तो इसमें बुराई क्या है ।
लेकिन आर0के0फिल्म्स से अलग होने के बाद कोई भी नरगिस की शख्सियत की ठसक, उनकी रूमानियत, नाज़ुकी, अल्हड़ता, शोखी और बेफिक्री को एक साथ नहीं उभार सका । हां उन्होंने कुछ बड़ी कमाल की फिल्में राज कपूर के प्रोडक्शन के अलावा भी कीं ।
मुझे ‘मदर इंडिया’ की उनकी भूमिका बेहद प्रिय है । भारतीय नारी के संघर्ष को जिस तरह नरगिस ने
जिया वो अन्यत्र दुर्लभ है । मुझे याद है फिल्म निर्देशक कुणाल कोहली ने कहीं कहा था—‘मदर इंडिया’ के गाने ‘घूंघट नहीं खोलूं’ में जिस तरह नरगिस लजाई और सकुचाई नज़र आती हैं, वैसी लाज तो आज की लड़कियों में सिरे से ग़ायब है और आज की हीरोईनों से भी हम वैसा अभिनय नहीं करवा सकते’ ।
जब ये बात मैंने लता जी को सुनाई तो वो ज़ोर से हंसीं और उन्होंने कहा कि इस लाज को अपने गायन में उतारने के लिए उन्हें कई कई गानों में बड़ी मेहनत करनी पड़ी थी ।
सन 1958 की उनकी फिल्म ‘लाजवंती’ एक बेहद अच्छी फिल्म है । और फिल्म ‘रात और दिन’(1967) दोनों फिल्में अपने अनोखे कथानकों के कारण वैसे भी उल्लेखनीय हैं । लेकिन चूंकि हम गीतों के बहाने नरगिस जी को याद कर रहे हैं तो ज़रा ये गाना है ‘गा मेरे मन गा’ सचिन दा की तर्ज़ ।
घर से निकाली गयी एक पतिव्रता स्त्री का गीत है ये । जो अपने आप में दुखियारी है । इसे सुनिए मत देखिए, और नरगिस के चेहरे को देखिये । कितनी पीड़ा, कितना संत्रास है, उनके चेहरे पर ।
फिल्म रात और दिन में नरगिस ने एक ऐसी स्त्री का किरदार निभाया जिसे नींद में चलने की बीमारी है । इस बीमारी की वजह से किस तरह उसका पारिवारिक जीवन नर्क हो जाता है इसकी दास्तान है ये फिल्म ।
आवारा ऐ मेरे दिल जाने कहां है तेरी मंजिल’ इस में नरगिस जी की अदायगी अपने आप में निराली है । हर बार वो बिल्कुल अलग नज़र आती हैं ।
कहते हैं कि नरगिस सही मायनों में एक भारतीय स्त्री की आदर्श छबि थीं ।
नरगिस ने ज्यादातर संघर्ष करती और जूझती और अपने अस्तित्व के लिए लड़ती नारी की भूमिकाएं निभाईं और कहना ना होगा कि बख़ूबी निभाईं ।
उनके जीवन की नाटकीयता देखिए कि फिल्म ‘मदर इंडिया’ की शूटिंग के दौरान जब वो आग की लपटों में घिर गयीं थीं तो फिल्म में उनके बेटे की भूमिका निभा रहे सुनील दत्त ने उन्हें बचाया था । बाद में उन्होंने नरगिस के सामने शादी का प्रस्ताव भी रखा और नरगिस ने अपने से एक साल छोटे बेहद ज़हीन और शानदार व्यक्तित्व को अपना जीवनसाथी चुन लिया
उस ज़माने के नज़रिए से ये भी एक साहसिक निर्णय था । फिर वे राज्यसभा में चुनी जाने वाली पहली भारतीय अदाकारा बनीं और वहां वो केवल सजावट की चीज़ (ornamental member) बनकर नहीं गयीं, वहां उन्होंने ज़बर्दस्त सक्रियता दिखाई । जीवन की त्रासदी देखिए कि कैंसर के खिलाफ़ जंग छेड़ने वाली नरगिस खुद इस जानलेवा बीमारी की शिकार बनीं और फिर इस बीमारी से हार भी गयीं ।
मैंने कितने ही फिल्म कलाकारों से सुना है कि नरगिस कितनी बड़े दिल वाली और कितनी जिंदादिल थीं । कई बार तो पूरी यूनिट के लोगों के लिए खाना बनाकर लाती थीं । साथी कलाकारों का बहुत ख्याल रखती थीं ।
उनका गरिमामय व्यक्तित्व, समाज से उनके सरोकार, उनकी जिंदादिली और उनकी प्रतिभा एक साथ इतने गुण आज की अभिनेत्रियों में कम ही नज़र आते हैं । नरगिस जी को विनम्र श्रद्धांजलि ।
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