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फ़िल्म समीक्षा - सरबजीत

कलाकार: ऐश्वर्या राय, रणदीप हुड्डा, रिचा चड्ढा, दर्शन कुमार, अंकुर भाटिया, अंकिता श्रीवास्तव, शिवानी सैनी, राम मूर्ति शर्मा  
निर्देशक: उमंग कुमार
निर्माता: वाशु भगनानी, भूषण कुमार, संदीप सिंह
लेखक : उत्तकर्षनि वशिष्ठ, राजेश बेरी
संगीत : अमाल मलिक, जीत गांगुली, साहिल-प्रितेश
रेटिंग :  3 स्टार


2 May 2013 को सरबजीत नहीं आया.. आई तो उसकी मौत की ख़बर - भारत-पाक सीमा से सटे पंजाब के गांव भिखिविंड के रहने वाले सरबजीत सिंह के बारे में आम लोग केवल इतना ही जानते हैं कि वह पाकिस्तान की जेल में बंद है, और उसे बचाने के लिए उनकी बड़ी बहन दलबीर कौर जी जान से लड़ती रही है। 

एक ओर तो ख़बर आई की सरबजीत जेल से रिहा होने ही वाला है तो वही एक दिन खबर आयी कि जेल में कुछ कैदियों ने उसे मार डाला है। पाकिस्तान से सरबजीत नहीं आया आई तो उसकी लाश यहां आयी और और बस एक बेबस की कहानी का अंत हो गया 

निर्देशक उमंग कुमार जो साल 2014 में प्रियंका चोपड़ा को लेकर 'मैरी कॉम' फ़िल्म बना चुके हैं, उमंग कुमार की फिल्म 'सरबजीत' को देखने के बाद कल्पना कर पायेंगे की एक इंसान जो बेग़ुनाह था, ग़लती से वो जब अपने देश की सीमा लाँघ गया तब उसके साथ साथ क्या क्या नहीं हुआ। 

एक चौंकाने वाली कहानी आपके सामने आएगी कई बार आप और हम भाव विभोर हो जायेंगे और आँखें नम जायेगी। कुछ ऐसी बातें भी दिमाग में आयेंगी की दो देशों के बीच सियासी लड़ाई  में कैसे एक मासूम फँस गया , जिस पर कई तरह के ज़ुल्म किये गए । असल ज़िन्दगी के सरबजीत और दलबीर कौर के किरदार के साथ आज के कलाकारों ने कितना  न्याय किया है, फ़िल्म में दर्द के साथ नफ़रत विरह दो देशो की सरकार से जद्दोजहद के साथ मनोरंजन का क्या ख़याल रखा गया है आइये इस बात पर नज़र डालते हैं ......

क्या ये फ़िल्म सही मायने में एक बायोपिक बन पायी है गौर फरमाइए।

1990 में सरबजीत (रणदीप हुड्डा) शराब के नशे में गलती से पाकिस्तानी सीमा में प्रवेश कर जाता है .. नशे की हालत में मिले सरबजीत को पाक सिपाही जेल में डाल देते हैं और आठ महीनों तक उसके घरवालों को उसकी कोई खबर नहीं मिलती

एक दिन पाकिस्तान से सरबजीत की बड़ी बहन दलबीर कौर (ऐश्वर्या राय) के नाम एक बैरंग चिट्ठी आती है। इस चिट्ठी से दलबीर कौर और सरबजीत की पत्नी सुखप्रीत (रिचा चड्ढा) के मन में उसे वापस लाने की एक आस जगती है।

दलबीर, इलाके के विधायक से लेकर राज्य के मुख्यमंत्री तक हर किसी की चौखट तक गुहार लगाती है। करीब आठ महीने के बाद जब वह दिल्ली में प्रधानमंत्री से सरबजीत की रिहाई के लिए मिलती है तो उसे ‘देखते हैं’ जैसे दो शब्दों का आश्वासन मिलता है। दलबीर कौर टूट जाती है, लेकिन हिम्मत नहीं हारती। 

उधर, रौंगटे खड़े कर देन वाली यातनाएं झेल रहे सरबजीत को कहा जाता है की वो रंजीत सिंह है जो पाकिस्तान में हुए बम धमाकों का आरोपी है  सरबजीत को डेथ सेल में रखा जाता है, उसे इलाज़ के तरसाया गया पाक जेल में .... बेड़ियों में जकड कर रखा गया सरबजीत को ये सब आप फ़िल्म सरबजीत में देख पाएँगे ... हरियाणा के रणदीप हूडा ने बख़ूबी इस क़िरदार में जान फूकीं है .... एक एक दृश्य आँख में आँसू ले आने वाला है .... 

सरबजीत की बच्चियां 10 से 15 साल में पिता के आने के इंतज़ार में बड़ी हो जाती हैं..... फिर एक दिन उम्मीद की किरण भी दिखती है। सरबजीत के पूरे परिवार को उससे पाकिस्तान में मिलने का मौका मिलता है। लेकिन रिहाई फिर भी नहीं हो जाती। एक दिन एक पाकिस्तानी वकील अवैस शेख (दर्शन कुमार) दलबीर कौर की तरफ मदद का हाथ बढ़ाता है और सरबजीत का केस लड़ता है। उसे शुरुआत में कामयाबी भी मिलती है और रिहाई का रास्ता भी। 

सब ठीक चल ही रहा होता है कि सरबजीत की रिहाई वाले दिन उसकी लाश भारत आती है।

सरबजीत की ही तरह पाकिस्तान की विभिन्न जेलों में सैंकड़ों भारतीय बंद हैं और जो इस तरह के ज़ुल्म का शिकार है,  गलत पहचान या कहिये धोखे से पकड़े गए सैंकड़ों भारतियों को वहां मौत से बदतर जिंदगी जेलों में गुजारनी पड़ रही है। 

इसलिए सरबजीत की कहानी उत्सुकता तो पैदा करती है। लेकिन इस कहानी में सिनेमाई ड्रामा भी है .....

फिल्म में गीत-संगीत है जो सरबजीत की जिंदगी के हसीन पलों को संजोता है, लेकिन गंभीर क्षणों में यह प्रभावी नहीं दिखता। 

सरबजीत के पाकिस्तान जाने से पहले का कथानक काफी फिल्मी लगता है। फ़िल्म के एक सीन में सरबजीत की बेटी पिता के इंतजार से तंग आकर उकताकर अपने पिता की तमाम चीजें जला देती है। परिवार का संघर्ष कम दिखाया गया है

कथानक की चूक से दलबीर कौर के संघर्ष से ज्यादा  जेल में बंद सरबजीत की कहानी बार-बार चौंकाने वाली लगती है और असर भी दिखाती है। जेल में सरबजीत से उसके पूरे परिवार के मिलने वाला सीन काफी भावनात्मक है।  सरबजीत के दृश्य आपको फ़िल्म से जोड़े रखेंगे

अभिनय के मंच पर बांधे रखने का प्रभावशाली कार्य रणदीप हुड्डा ने बखूबी किया है। 

जेल में यातनाएं झेल रहे कैदी का मेक-अप और उसके हावभाव को उन्होंने बखूबी अपने अभिनय में उतारा है। उनकी आंखों से बेबसी और शरीर से टूट जाने की आवाज महसूस होती है। लगता है कि हां वाकई कोई जेल से बाहर आने के लिए तड़प रहा है। 

वहीँ दूसरी ओर ऐश्वर्या राय ने बस अपने किरदार को निभा रही है या बचा रही है । पंजाबी उन पर जम नहीं रही। न ही वह बूढ़ी लगती है। साठ साल की उम्र वाला किरदार उनके ऐश्वर्या के ऊपर फिट नही लग रहा 

जहाँ तक संवाद अदायगी की बात है तो ऐसा लग रहा है जैसे जबरदस्ती जोर लगा कर करवाया गया है । ऐसे लगता है कि आक्रोश उनसे उगलवाया जा रहा है। एक महत्वपूर्ण किरदार और ऐश्वर्या राय के fans थोडा निराश हो सकते है । इसके अलावा रिचा चड्ढा ने भी काफी अच्छा अभिनय अच्छा किया है। हालांकि उनके किरदार के लिए इस फ़िल्म ज़्यादा कुछ नहीं रखा गया ....
देखा जाये तो सरबजीत अपने आप में एक ज्वलंत विषय है जहाँ उत्सुकता पैदा होती है की जाने की कौन था सरबजीत
फ़िल्म कई जगह बांधे भी रखती है और अभिनय से चौंकाती भी है। 

सरबजीत के क़िरदार के साथ रणदीप हूडा ने पूर्ण न्याय किया है .... कई सारे अवार्ड उनका इंतज़ार कर रहे हैं ..... फ़िल्म ज़रूर देखें और दर्द न्याय परिवार का प्रेम भाई बहन ने रिश्ते की अहमियत को एक बार महसूस करें यही है उमंग कुमार की सरबजीत ......

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