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फ़िल्म समीक्षा - लाल रंग

लाल रंग पर्याय है शक्ति, ऊर्जा, खतरे और प्यार का लाल रंग नहीं होता तो शायद हम इन सभी का अर्थ समझ नहीं पाते ... जहाँ लाल रंग शक्ति, ऊर्जा, खतरे और प्यार का का प्रतीक है, वही लाल रंग हमारे जीवन संचार करने वाले रक्त का भी रंग है ....

यह लाल रंग जो हमारे शरीर में लहू बन कर बह रहा है... ये एक इंसान के जीवन का सहारा है ....

ख़ून का हमारे जीवन में क्या अर्थ है और ख़ून कितना अहम है हमारे जीवन में इसी सब को दर्शाती है फ़िल्म लाल रंग - "सैयद अहमद अफज़ल" ने एक अच्छे उद्देश्य के साथ 'लाल रंग' को हमारे सामने रखा



हरियाणा के क्षेत्रो में होने वाले ब्लड माफियाओं पर आधारित है फ़िल्म लाल रंग , फ़िल्म में एक अच्छा सन्देश है की ख़ून देने से कमज़ोरी नहीं आती, ख़ून का लेन देन करने से पहले जांच ज़रूरी है, ख़ून जब भी लें, बदले में रक्त दान भी करें और जो लोग आमतौर पर ख़ून देने के व्यवसाय में है वो कम से कम तीन महीने के अंतराल पर ही रक्तदान करें ....

फ़िल्म में एक असल घटना के आधार पर दिखाया गया है की जो खून किसी की जिंदगी बचा सकता है, कैसे कुछ लोगों ने इसे व्यापार बना लिया, वे रक्त दान करने के बजाय रक्त ऊंचे दामों में अवैध तरीके से बेचते हैं। इन रक्त माफियाओं के काम करने के तरीके के इर्दगिर्द घूमती है 'लाल रंग'।

एक अलग विषय पर बनाई गयी है लाल रंग, लेकिन कहीं यह डॉक्यूमेंट्री की शक्ल न लेले, इसलिए निर्देशक और लेखक ने इसे मनोरंजक बना कर दिखाया है, कहीं कहीं पर आपको थोड़ी लम्बी लगने लगेगी.... लेकिन फ़िल्म के हर दृश्य में आपको हरयाणवी चुहलपन अल्हड़पन आपको बाँधे भी रखेगा....

फ़िल्म में लीड रोल में है हरियाणा के मस्त मौला कहें जाने वाले प्रिंस रणदीप हूडा, घुड़सवारी के शौक़ीन रणदीप ने बखूबी अपनी हरयाणवी भाषा का प्रयोग किया है शंकर और राजेश की दोस्ती मनोरंजन का एक हिस्सा है तो वहीं इटावा की पिया वाजपेई ने भी अपने हास्य अंदाज़ से दर्शकों का मन मोहा है


मनोरंजन भी ज़रूरी है इसलिए पूनम का क़िरदार शंकर के जीवन में दिखाया गया है जो की एक बेहद शांत क़िरदार लगेगा ... फिल्म में दिखाया गया है कि किस तरह गरीबों से पैसों के बदले में खून का व्यापार किया जाता है। कैसे अस्पताल वाले पुराने खून को नया खून बताकर मरीज को चढ़ा देते हैं। रक्तदान शिविरों में से किस तरह खून को चुरा‍ लिया जाता है।

लेकिन बीच-बीच में राजेश-पूनम तथा शंकर की लव स्टोरी भी फ़िल्म में नज़र आएगी ..... कई दृश्य है जो आपके सब्र की परीक्षा लेते है। कई जगहों पर जाकर ये फिल्म बेहद सुस्त गति के बाद भी आपको बाँध कर रखती है ।।

जहाँ तक कलाकारों के अभिनय की बात करें तो अपने दम पर रणदीप हूडा ने एक बार फिर अपना लोहा मनवा ही लिया एक और क़िरदार उनके पाले में आ गया जिसे वो ही निभा सकते थे ।

अक्षय ओबेराय और पिया ने भी बेहद प्रभावशाली काम किया है पर पूनम का क़िरदार अपनी छाप नहीं छोड़ पाया ।।

कुल मिलाकर फ़िल्म आपको निराश नहीं करेगी .... ड्रेकुला और बाबा का किरदार भी अपने आप में मस्त है ।।

कुल मिला कर 3 सुर यानि 3 स्टार दे सकते हैं ...


#सुरभि 


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